Stock Market में PE Ratio और EPS Ratio क्या होता है? शेयर मार्केट की पूरी जानकारी हिंदी में- फ्रेंड्स जैसा कि आपने पोस्ट का टाइटल पढ़ा है कि स्टॉक मार्केट में PE Ratio क्या होता है? EPS Ratio क्या होता है? तो हम आपको बता दे कि शेयर बाज़ार में निवेश करने से पहले आपको पीई और ईपीएस अनुपात के बारे में पता होना चाहिए क्योकि ये Share Market का महत्वपूर्ण फेक्टर है।
अगर आपको इसकी सही नॉलेज नही है तो आप कभी भी सही कम्पनी का चुनाव नही कर पाएगे, कहने का मतलब है कि कौन सी कम्पनी कब और कितना प्रॉफिट देगी या फिर आपको किस कम्पनी के शेयर कब खरीदने चाहिए। ये सारी चीज आप तब ही पता लगा सकते है जब आपको किसी Company का PE Ratio और EPS Ratio निकालना आता हो। क्योकि शेयर मार्केट में निवेश करने से पहले बहुत सी चीजो को ध्यान में रखा जाता है जिनमे से एक है PE Ratio Kya Hai In Hindi और EPS Ratio Kya Hai In Hindi।
दोस्तों जब आप स्टॉक Buy करते है तो आपको पता होना चाहिए कि PE Ratio Kya Hota Hai in Hindi, EPS Ratio Kya Hota Hai?, निवेश करने से पूर्व किसी भी कंपनी का ईपीएस (EPS) और PE Ratio क्यों देखा जाता है?, Balance Sheet Kya Hai? ( What Is Balance Sheet In Hindi ) क्योकि इन सब की जानकारी होना बहुत ही जरूरी और अनिवार्य है। आज के इस आर्टिकल में आप यहाँ शेयर मार्केट की पूरी जानकारी हिंदी में विस्तार से जानेगे-

PE Ratio क्या होता है इन हिंदी | EPS Ratio क्या होता है इन हिंदी | शेयर मार्केट की पूरी जानकारी हिंदी में
किसी भी कंपनी के शेयर्स खरीदने से पहले कई पहलुयों को देखना पड़ता है, इनमे से PE Ratio काफी महत्वपूर्ण है Price to Earing Ratio को संछिप्त में PE Ratio कहा जाता है । यह Price to Earnings Ratio एक अनुपात है, जो कंपनी के शेयर का दाम और उसके EPS की तुलना करता है। किसी भी स्टॉक के वैल्यूएशन करने में पीई रेश्यो बहुत ही महत्पूर्ण रेश्यो होता है।
यदि आपको स्टॉक मार्केट में सफल निवेशक बनना है तो आपको PE Ratio को अच्छे से समझना और निकलना आना चाहिए क्योकि जो सफल निवेशक होते है वो PE Ratio को बिना देखे और समझे किसी भी स्टॉक में निवेश नहीं करते है । हर तरह के निवेशक के लिए PE Ratio को समझना बहुत ही जरूरी होता है।
फिर आप चाहे लंबी अवधि के लिए स्टॉक मार्केट में निवेश करते हैं या फिर Intraday Trading करते है, हर परिस्थिति में अच्छी स्टॉक को चुनना आवश्यक है। आज मैं आपको एक ट्रिक बता रहा हूं जिसके द्वारा आप एक सेकंड में मालूम कर सकते हैं कि यह शेयर खरीदना चाहिए या नहीं।
आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम समझेंगे कि PE Ratio क्या होता है, इसे कैसे निकाला जाता है और PE Ratio का कैसे इस्तेमाल किया जाता है, जब भी हम किसी कंपनी की क़ीमत का मूल्यांकन करना चाहते है, तो सबसे पहले जिस अनुपात या ratio के बारे में पता लगाना चाहिए वह है, P/E ratio। P/E ratio से हमें पता चलता है, की हम 1 रुपए की कमाई के लिए कितने रुपए दे रहे है साधारण भाषा में इसका मतलब यह होता है कि हमें कितने रुपए लगाने पर कितने रुपए मिलेगा।
जब भी हम कोई Share खरीद लेते है तो मन में कई तरह की शंका उत्पन्न होने लगती है जैसे की यह शेयर महंगा तो नहीं है। इसे लेने के बाद इसका दाम नीचे तो नहीं गिर जाएगा। यदि आपके भी मन में भी यह आशंकाएं उत्पन्न हो रही है कि जो शेयर हम खरीदने जा रहे हैं वह सस्ता है या महंगा। यह कैसे पता करें
किसी भी कंपनी का PE Ratio ( Price to Earing Ratio ) निकलने का फार्मूला है जिसके उपयोग से आप पता कर सकते है की इस कंपनी का शेयर महंगा है या सस्ता
“PE Ratio = Market Price of a Share / EPS (Earning Per Share)”
जहा पर Market Price of a Share का मतलब है, कंपनी के एक शेयर का शेयर बाजार में दाम और Earning Per Share का मतलब है, उस प्रत्येक शेयर पर कंपनी की कमाई। आईये इसे उदाहरण से समझते है-
मान लीजिये किसी एक कंपनी का शेयर 200 रूपए का है और पिछले एक साल में उस कंपनी ने एक शेयर पर 20 रूपए की कमाई की ( इस 20 रू को EPS कहेगे ), अब उस कंपनी का PE Ratio निकलने के लिए 200 रू में 20 रू का भाग देगे तो उसका PE रेश्यो 10 निकल के आएगा । जिसका अर्थ है कि आपको 1 रू कमाने के लिए 10 रू निवेश करने होंगे, इस प्रकार P/E Ratio उसे कहते हैं जिसे प्रति शेयर बाजार मूल्य में उसके द्वारा दी गई आय के द्वारा भाग देने पर जो प्राप्त होता है वही PE Ratio होता है।
शेयर खरीदने हेतु PE Ratio क्या होने चाहिए
अब आपके मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि शेयर खरीदने वक्त हमें कितना P/E Ratio का शेयर खरीदना चाहिए और कितना P/E Ratio शेयर नहीं खरीदना चाहिए।
आमतौर पर वित्तीय सलाहकार कहते हैं कि जिसका P/E Ratio 30रू से ज्यादा है उसे हमें नहीं खरीदना चाहिए। क्योंकि यदि मुझे ज्यादा लगाकर यदि मुझे 1 रू प्राप्त हो तो यह कभी भी ठीक नहीं माना जा सकता है।
दुनिया के सबसे सफल निवेशक Warren Buffett का कहना है, की अगर किसी शेयर का PE ratio 15 से ज्यादा है, तो उसे महंगा कह सकते है और अगर उसका PE ratio 15 से कम है, तो उसे सस्ता कह सकते है।
PE Ratio > 15 High Valuation
PE Ratio < 15 Low Valuation
वैसे जैसे जैसे कंपनी मुनाफा कमाती रहती है उसका P/E Ratio बढ़ता रहता है। इसलिए आप कंपनी के पिछले कुछ सालों का मुनाफा देख सकते हैं। यह जरूरी नहीं कि पीई रेश्यो ज्यादा होने से उस शेयर में निवेश ना करें।
Share Market Basic to Advance ( शेयर मार्केट की पूरी जानकारी हिंदी में )
क्या केवल PE Ratio द्वारा ही अच्छे शेयर का चुनाव सही है?
यदि आप सोच रहे हैं कि मुझे PE Ratio निकालना आ गया और इसे देखकर मैं अच्छे से शेेेयर खरीद कर एक सफल निवेशक बन जाऊंगा तो यह आप गलत सोच रहे हैं। कई बार हम भ्रम में भी आ जाते हैंं जिसके कारण हम गलत शेयर खरीद कर नुकसान उठा लेते हैं। कई ऐसे भी कंपनी होती हैं जिसकी P/E Ratio में काफी उतार-चढ़ाव होता रहता है। यानी किसी वर्ष यह बहुत ज्यादा बढ़ जाता है और किसी कारण बहुत कम हो जाता है।
अगर किसी कंपनी के शेयर का पीई रेश्यो ज्यादा है तो इसका अर्थ है की या तो अन्य इन्वेस्टर्स उस कंपनी से भविष्य में अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद कर रहे है या फिर उस कंपनी के शेयर जरूरत से ज्यादा ऊँचे दाम पर बेचे जा रहे है इसी प्रकार अगर किसी कंपनी के शेयर के P/E Ratio काफी कम है
तो इसका अर्थ है की या तो निवेशक उस कंपनी से भविष्य में ख़राब प्रदर्शन करने की उम्मीद कर रहे है या फिर उस कंपनी के शेयर जरूरत से ज्यादा कम दाम चल रहे है हो सकता है कंपनी में कुछ समस्याएँ हो, तब भी कंपनी का PE Ratio बहुत निचे जा सकता है और ऐसी कंपनी में निवेश से हमें बचना चाहिए।
हम आपको बता दे जो कम्पनिया घाटे में चल रही होती है उनका अक्सर P/E Ratio NA ( Not Applicable ) लिखा जाता है, आमतौर पर किसी कंपनी का PE Ratio को उसकी ही जैसी कम्पनियों के पीई रेश्यो से मिलाकर देखा जाता है जैसे अगर कोई कंपनी स्टील की है तो उसका P/E Ratio दूसरी स्टील कंपनी के PE Ratio से मिलाकर देखना चाहिए, स्टील की कंपनी का P/E Ratio को टेलिकॉम या पेट्रोलियम की कंपनी के PE Ratio से नही मिलाना चाहिए।
भारतीय शेयर बाज़ार में मुख्य रूप से दो जगह Shares की खरीदी और बिक्री होती है एक है निफ्टी और दूसरा है सेंसेक्स। Sensex और Nifty यह बताती है कि अभी Indian Share Bazaar का क्या हाल है। यदि आप नये निवेशक हैं या शेयर मार्केट में निवेश करने की सोच रहे हैं
तो सेंसेक्स और निफ्टी का PE Ratio जाकर जरूर देख लें। आपको पता लग जाएगा कि अभी Indian Share Market सस्ता है या महंगा है। सस्ता है तो फिर आप निवेश की शुरुआत कर दीजिए और यदि महंगा है तो कुछ समय इंतजार कर सकते हैं।
अब आप समझ ही गये होंगे की Stock Market Me PE Ratio Kya Hai तथा पीई रेश्यो का शेयर मार्केट में क्या महत्व है? यहाँ आपको शेयर मार्केट की पूरी जानकारी हिंदी में मिलेगी वो भी आसान शब्दों में इसलिए आप इस पोस्ट को पूरा अंत तक जरुर पढ़े। अब आप सोच रहे होंगे कि ये तो थी पीई रेश्यो के बारे में जानकारी लेकिन Stock Market Me EPS Ratio Kya Hota Hai In Hindi तो आपके इस सवाल का जवाब हमने आगे विस्तार से बताया है।
स्टॉक मार्केट में EPS Ratio क्या होता है? ( What is EPS Ratio in Stock Market In Hindi ) | शेयर मार्केट की पूरी जानकारी हिंदी में
अक्सर हम EPS के बारे में सुनते है की एक निवेशक को इसके बारे में जरूर पता होना चाहिए तो आज हम जानेगे की EPS आखिर होता क्या है और EPS full form क्या है ? और जानेंगे की कैसे हम किसी कंपनी का EPS निकाल सकते है ? शेयर बाजार में इसकी गणना कैसे की जाती है? इसका संबंध PE Ratio से किस प्रकार है? इन सारी चीजों के बारे में हम आज के इस पोस्ट में जाने वाले हैं।
EPS Full Form होता है Earning Per Share हिंदी में इसका अर्थ होता है प्रति शेयर आय। EPS किसी कंपनी का व्यापार कैसा चल रहा है यह जांनने में मदद करता है। जब कोई कंपनी व्यापार करती है तो उससे लाभ कमाती है और वह लाभ कंपनी के एक शेयर पर कितना है यह पता करने के लिये EPS (Earning Per Share) देखा जाता है।
अपने नाम की तरह ही Earning Per Share कंपनी के एक शेयर पर उस की कमाई है मतलब किसी भी कंपनी के पास लाखों से लेकर करोड़ो शेयर होते है और कंपनी अपने एक शेयर के ऊपर कितना लाभ कमाती है इसे EPS कहते है।
जब कोई भी बिगिनर्स शेयर बाजार में निवेश की सोचता है. तब बिगिनर्स को निवेश करने के पूर्व संबंधित कंपनी के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है बिना सोचे समझे बिना फंडामेंटल एनालिसिस के शेयर बाजार में निवेश करने में नुकसान हो सकता है, बिना शेयर बाजार की जानकारी के निवेश करने से बचना चाहिए।
आज हम ईपीएस (EPS) क्या है? TTM EPS किसे कहते हैं? ईपीएस (EPS) का शेयर मार्केट में क्या रोल है? शेयर मार्केट में निवेश करने के पूर्व किसी भी कंपनी का ईपीएस (EPS) क्यों देखा जाता है? आज हम ईपीएस (EPS) की विस्तृत जानकारी आर्टिकल के माध्यम से देने जा रहे हैं।
EPS किसी भी कंपनी के आंकलन करने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है EPS से हम यह अनुमान भी लगा सकते है, की हमें अपने निवेश किए गए पैसो पर कितना रिटर्न कितने समय में मिलेगा। किसी भी कंपनी का ईपीएस कैलकुलेट करने के लिए आपको उस कंपनी के दो चीज़ो के बारे में पता होना जरूरी है एक उस कंपनी का शुद्ध लाभ कितना है और दूसरा कंपनी के कुल शेयर कितने है।
EPS Ratio को कैसे Calculate किया जाता है?
ईपीएस (EPS Ratio) किसी कंपनी की आर्थिक स्थिति का आकलन करने का एक महत्वपूर्ण घटक होता है, कंपनी द्वारा प्रतिवर्ष कितना NET PROFIT अर्जित किया जाता है, किसी कंपनी की वित्तीय स्थिति कितनी मजबूत है, कोई कंपनी प्रतिवर्ष प्रति शेयर कितना प्रॉफिट कमा रही है, कंपनी कितनी प्रॉफिटेबल कंपनी है, इस कंपनी में निवेश किया जाना उचित है या नहीं उसका आकलन ईपीएस (EPS Ratio ) द्वारा किया जाता है।
EPS का calculation करना बेहद आसान है आप आसानी से इसकी गणना कर सकते है आपको बस कंपनी के हुए शुद्ध लाभ को कंपनी के कुल शेयर्स से विभाजित करना है ।
“Earning per share = कुल लाभ ÷ कुल शेरों की संख्या”
या
“EPS Formula= Total Net Profit / Total Number of Share”
जब कंपनी के तिमाही या सालाना शुद्ध लाभ में से कंपनी के कुल शेयर्स को भाग दे दिया जाता है तो कंपनी का EPS (Earning Per Share) निकल कर आता है।
चलिए हम इसे एक उदाहरण के जरिए समझते हैं। मान लीजिए कि कोई बिस्कुट बनाने वाली कंपनी की कुल पूंजी लगभग 1 करोड़ रुपए है। हम यह मान लेते हैं कि प्रति शेयर की कीमत ₹100 है। इस स्थिति में उस कंपनी के पास लगभग 1 लाख शेयर होंगे। माना कि किसी भी वित्तीय वर्ष में उस कंपनी ने 50 लाख का मुनाफा कमाया है। तब उस कंपनी के प्रति शेयर आय या Earning per share होगा
EPS = कुल शुद्ध लाभ/शेयरों की कुल संख्या
EPS = 50 लाख रुपए शुद्ध लाभ/100000 शेयर = 50
यानी कि बिस्कुट बनाने वाली कंपनी की प्रति शेयर आय 50रू होगी।
कंपनी का शुद्ध लाभ वह होता है जब बिस्किट बनाने में जितना खर्चा (कॉस्ट) आया है उसे माइनस किया जाता है यदि कंपनी ने बैंक से लोन ले रखा है तो लोन की EMI भी रेवेन्यू में से दी जाती है यदि इस कंपनी में प्रेफरड शेयर होल्डर है तो तो उन प्रेफरड शेयर होल्डर को एक फिक्स्ड डिविडेंड देना होता होता है शेष बची हुई राशि में से इनकम टैक्स भरना होता है. इनकम टैक्स भरने के बाद जो राशि बचती है. उसे नेट प्रॉफिट कहा या शुद्ध लाभ जाता है।
ईपीएस के प्रकार ( Types of EPS )
Earning Per Share यानी EPS दो प्रकार के होते है।
- Basic Earning Per Share (Basic EPS)
- Diluted Earning Per Share (Diluted EPS)
वैसे तो हम किसी भी कंपनी के EPS को कंपनी के Total Comprehensive Income ( कुल शुद्ध लाभ ) में कंपनी द्वारा जारी किए गए शेयर की संख्या का भाग देकर निकाल सकते है। लेकिन हमें कंपनिया अपने Profit & Loss Statement में Basic और Diluted EPS दोनों ही निकाल कर देती ही है तो आप सीधे वही से ही देख सकते है।
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TTM EPS किसे कहते हैं? ( What is TTM EPS? )
TTM एक ऐसा टूल जो भविष्य का मल्टीबैगर चुनने में आपकी मदद कर सकता है। शेयर बाजार में जब किसी कंपनि के वित्तीय आंकड़े देखे जाते हैं तो TTM पीरियड लिया जाता है। ऐसा क्यों किया जाता है और इससे किस तरह से आंकड़े वास्तविकता के ज्यादा करीब हो जाते हैं यह समझते हैं आसान हिंदी भाषा में-
TTM का फुल फार्म है Trailing Twelve Months होता है TTM EPS से तात्पर्य है किसी कंपनी ने Last Twelve Month में कितना नेट प्रॉफिट कमाया है Last 12 Month का मतलब फाइनेंसियल ईयर से नहीं है फाइनेंशियल ईयर 1 अप्रैल से शुरू होकर अगले वर्ष की 31 मार्च तक होता है। कंपनियां अपनी बैलेंस शीट वार्षिक आधार पर जारी करतीं हैं मगर कंपनी की आर्थिक सेहत कैसी चल रही है यह जानने के लिये पूरे एक साल तक इंतजार नहीं किया जा सकता।
किसी भी कंपनी का TTM EPS देखने के लिए फाइनेंसियल ईयर की आवश्यकता नहीं होती है. जैसे कि हमने 1 मई को किसी कंपनी का TTM EPS देखना होता है तो मई के पूर्व के 12 माह में कंपनी ने कितना नेट प्रॉफिट कमाया उसकी गणना की जाती है, इसीप्रकार से जून माह में हम किसी कंपनी का TTM EPS देखते हैं तो जून माह के पूर्व के 12 माह में कंपनी द्वारा कितना नेट प्रॉफिट कमाया गया है उसकी गणना की जाती है. इसमें फाइनेंसियल ईयर से कोई लेना देना नहीं होता है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि त्यौहारों के दिनों में यानी दिसंबर में खत्म होने वाली तिमाही में बहुत से उत्पादों की बिक्री अधिक होती है। इसी प्रकार एसी और फ्रिज गर्मियों में अधिक बिकते हैं। इसीलिये कंपनी के आय के आंकड़े साल भर के लिये ही लिये जायें तो ज्यादा अच्छे से वास्तविकता के निकट होते हैं जिस माह में हमारे द्वारा किसी कंपनी का TTM EPS देखा जाता है उसके पूर्व के कंपनी के 12 माह के प्रॉफिट की गणना की जाती है।
शेयर मार्केट में निवेश करने के पूर्व कंपनी की प्रॉफिट ग्रोथ कैसी चल रही है उसका पता लगाने के लिए निवेशकों को उस कंपनी का 4-5 वर्षों का ईपीएस देखना चाहिए, वित्तीय आंकड़ों की रिपोर्टिंग के लिए पिछले 12 महीनों के आंकड़ों के लिए TTM शब्द का प्रयोग किया जाता है।
यदि आप मार्च में सामप्त होने वाले वित्तीय आंकड़े देख रहे हैं तो बैलेंस शीट जो कि मार्च तक ही बनी है उसमें दिये आंकड़े ही पिछले बारह महीने के आंकड़े होंगे। जिस कंपनी की ग्रोथ रेट प्रति वर्ष बढ़ती जाती है उस कंपनी में निवेश करना अच्छा माना जाता है जितनी ज्यादा कंपनी की ग्रोथ होगी उतना ही कंपनी के शेयर में वृद्धि होती है जिससे शेयर होल्डरो को इसका लाभ मिलता है।
जून 2018 में जब किसी कंपनी के आय को देखा जायेगा तो जुलाई 2017 से जून 2018 तक के आंकड़े लिये जायेंगे ऐसे कंपनी के शेयरों में ही इन्वेस्टमेंट करना चाहिए जिनकी ग्रोथ रेट प्रति वर्ष बढ़ती जा रही है जितना ज्यादा EPS होता है उतना ही कंपनी ग्रोथ को अच्छा माना जाता है।
TTM का प्रयोग अक्सर EPS और PE Ratio गिनने के लिये किया जाता है ऊपर दिये गये उदाहरण में जून 2018 में पिछले 12 महीने के EPS को TTM EPS कहेंगे। लेकिन केवल ईपीएस रेशों को देखकर ही शेयर मार्केट में निवेश नहीं करना चाहिए जिन कंपनियों का प्रॉफिट प्रति वर्ष बढ़ता रहता है ऐसी कंपनियों के शेयरों में निवेश करना लाभदायक होता है।
दोस्तों अब तो आप जान ही गये होंगे की TTM क्या होता है और TTM EPS का शेयर मार्केट में क्या भूमिका है निवेश करने से पूर्व किसी भी कंपनी का ईपीएस (EPS) क्यों देखा जाता है? ये भी आप आज जान गये होंगे, तो चलिए अब जानते है Balance Sheet Kya Hai in Hindi ( बैलेंस शीट क्या होती है? )
Balance Sheet क्या है? ( What is Balance Sheet in Share Market in Hindi )
बैलेंस शीट को P/E Ratio और EPS Ratio के साथ समझाना और समझना मुस्किल है क्योकि Balance Sheet Kya Hai in Hindi खुद में एक बड़ा टॉपिक है इसलिए हम इसको नेस्ट ( शेयर मार्केट कैसे सीखे पार्ट 3 ) में कवर करेगे। अभी फ़िलहाल में आप बैलेंस शीट के बेसिक्स के बारे में जरूर समझ लीजिये ।
किसी व्यवसाय की वित्तीय स्थिति को प्रकट करने के लिए balance sheet बनाया जाता है यह किसी व्यापार की आर्थिक स्तिथि का विवरण होता है जो किसी कंपनी संस्था या बिजनेस की संपत्ति Liabilities, Shareholders Equity को एक निश्चित समय के दौरान रिपोर्ट प्रदर्शित करता है। Balance sheet से मतलब यह है कि एक ऐसा statement जो कि एक निश्चित तारीख या जिसमें किसी निश्चित अवधि पर व्यवसाय की वित्तीय स्थिति को प्रकट करता है।
संक्षेप में, किसी निश्चित समय पर एक व्यापार या संगठन की संपत्ति, देनदारियों (Liabilities) और पूँजी (Share Capital) के विवरण को balance sheet कहते हैं। ज्यादातर मामलों में देखा जाता है कि इसे लोग अपने व्यापार से संबंधित इसी वर्ष के अंत में या वित्तीय वर्ष के अंत में बनाया जाता है। दूसरे शब्दों में,इसे Profit and Loss account यानी कि लाभ हानि खाते भी कहते हैं।
कंपनी के P&L अकाउंट से हमें कंपनी के नफा-नुकसान के बारे में पता चलता है, जबकि बैलेंस शीट से हमें कंपनी के एसेट (Asset), लायबिलिटी (Laibility) और शेयरधारकों की हिस्सेदारी के बारे में पता चलता है। P&L स्टेटमेंट किसी एक वित्तीय वर्ष के बारे में जानकारी देता है
इसलिए इसे एक अलग स्टेटमेंट माना जा सकता है। जबकि दूसरी तरफ बैलेंस शीट एक ऐसा स्टेटमेंट है जो कंपनी की शुरूआत से लेकर अबतक की स्थिति में आ रहे बदलाव को दिखलाता है। इससे ये पता चलता है कि कंपनी वित्तीय तौर पर किस तरह से बदलती रही है।
किसी कंपनी की growth को balance sheet के जरिये आसानी से जांचा जा सकता है. यह किसी कंपनी या संगठन का Financial statement (वित्तीय विवरण) होता है दोस्तों आप बैलेंस शीट को इस तरह से ही समझ सकते है कि किसी कंपनी के लिए एक Balance Sheet उसके फाइनेंसियल स्थिति को दर्शाता है,
मान लीजिये आप शेयर मार्केट में निवेश करने जा रहे है तो आप स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट की गयी 5 कंपनियों की बैलेंस शीट को देख कर उन Balance Sheet का अध्ययन कर सकते है तथा इस Balance Sheet के जरिये कंपनी के ग्रोथ को आसानी से जाँच सकते है।
जब फर्स्ट टाइम शेयर मार्केट या स्टॉक मार्केट ट्रेडिंग करने जा रहे हो या फिर कुछ खरीद कर निवेश करने की योजना बना रहे हो तो फिर हमें बैलेंस शीट को जरूर स्टडी करना चाहिए। बैलेंस शीट क्या है? हिंदी में ( शेयर मार्केट की पूरी जानकारी हिंदी में )
किसी भी कंपनी की बैलेंस शीट एक प्रकार की कंपनी का कुल वित्तीय विवरण होता है जिसमे कंपनी की कुल उत्पादक संपत्ति, देनदारियां और नेट वर्थ, शेयरधारक की इक्विटी आदि को शो किया जाता है। बैलेंस शीट को कंपनी का स्टेटमेंट ऑफ कंडीशन भी कहा जाता है। कंपनी की बैलेंस शीट में टोटल प्रॉफिट एंड लॉस अकाउंट को शो किया जाता है।
जाते जाते एक बात आपको बता कर जा रहा हूं शेयर बाजार जितना ही लाभदायक है उतना ही नुकसानदायक। इसमें हम 1 दिन में लाखों कमा भी सकते हैं और लाखों गंवा भी सकते हैं। आप तभी इसमें निवेश करने की सोचे जब आप लाखों कमाने और गंवाने के लिए तैयार हो। किसी के भी कहने पर कहीं भी निवेश ना करें। सोच समझ कर फैसला ले। आपके मेहनत की कमाई पर पहला अधिकार आपका ही है। किसी के कहने पर किसी भी शेयर में निवेश ना करें।
FAQs ( अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न )
प्रश्न 1. PE Ratio का फुल फॉर्म क्या होता है?
PE Ratio का Full Form “Price to Earing Ratio” होता है।
प्रश्न 2. EPS Ratio का फुल फॉर्म क्या है?
EPS Ratio का Full Form “Earning Per Share” है।
प्रश्न 3. PE Ratio कितना होना चाहिए?
शेयर मार्केट में निवेश करते समय P/E Ratio 15 से 20 के बीच होना चाहिए। अगर किसी शेयर का PE ratio 15 से ज्यादा है, तो उसे महंगा कह सकते है और अगर उसका PE ratio 15 से कम है, तो उसे सस्ता कह सकते है।
प्रश्न 4. TTM Full Form क्या होता है?
TTM का फुल फार्म है “Trailing Twelve Months” होता है।
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निष्कर्ष
अभी आप इस लेख के माध्यम से EPS Kya Hota Hai? ( ईपीएस क्या है? ), निवेश करने से पूर्व किसी भी कंपनी का ईपीएस (EPS) और PE Ratio क्यों देखा जाता है?, EPS Kitne Prakar Ka Hota Hai, TTM EPS Kise Kahte Hai?, Balance Sheet Kya Hai? ( What Is Balance Sheet In Hindi ) जान गये होगे।
यदि आप लोगों को Share Market से जुडी किसी भी तरह का इससे सम्बन्धित कोई भी सवाल या सुझाव है तो आप हमसे कमेंट में पूछ सकते है जिनके जवाब हम आपको ज़रूर उत्तर देंगे।
आपको यह पोस्ट Stock Market में PE Ratio क्या होता है? और EPS Ratio क्या होता है? ( शेयर मार्केट की पूरी जानकारी हिंदी में ) कैसी लगी हमें comment लिखकर जरूर बताएं ताकि हमें भी आपके विचारों से कुछ सीखने और कुछ सुधारने का मोका मिले। कृपया इस पोस्ट को Social Networks जैसे कि WhatsApp, Facebook और Twitter इत्यादि पर share कीजिये ताकि शेयर बाज़ार में रूचि रखने वाले व्यक्ति को सही और सटीक जानकारी मिल सकते ताकि उसे नुकसान ना हो।
महत्वपूर्ण नोट: शेयर बाजार निवेश बाजार जोखिमों के अधीन एक हाई रिस्क मार्केट है, शेयर मार्केट के बारे में संपूर्ण जानकारी और समझ होने के बाद ही इसमें निवेश करे।