Dhanteras Kab Hai 2022- धनतेरस का क्या महत्व है?:- दीपावली महोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है, दिवाली से पहले 2 पर्व और दिवाली के बाद 2 पर्व आते हैं। इस प्रकार पांच पर्वों के क्रम में सबसे पहला पर्व धनतेरस है। धनतेरस में धन-धान्य के साथ अच्छे स्वास्थ्य की कामना की जाती है।
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता है, इसलिए कहा जाता है कि पहला सुख निरोगी काया और दूसरा सुख पास में माया। इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है, जो की भारतीय संस्कृति के हिसाब से बिल्कुल अनुकूल है।
आपको इस पोस्ट में Dhanteras से जुडी सारी जानकारी मिलेंगी। जैसे की धनतेरस का पर्व क्यों मनाया जाता है?, धनतेरस की पौराणिक कथा, धनतेरस का पुराना नाम क्या है?, Dhanteras Date and Time और शुभमुहूर्त, Dhanteras Ka Kya Mahatva Hai? आदि की जानकारी आपको विस्तार से मिलेंगी।

गोवर्धन पर्व क्यों मनाया जाता है? अन्नकूट उत्सव का क्या महत्व है पौराणिक कथा
धनतेरस का क्या महत्व है?- Dhanteras 2022
हिंदू धर्म में इस त्योहार को बहुत ज्यादा विशेष माना जाता है। यह पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है इसलिए इसे धनतेरस कहते है। उत्सव के पहले दिन, घरों और व्यावसायिक परिसर को सजाया जाता हैं, इस दिन कुछ नया खरीदने की परंपरा है। विशेषकर पीतल व चांदी के बर्तन खरीदने का रिवाज़ है।
इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है। सन्तोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास सन्तोष है वह स्वस्थ है, सुखी है, और वही सबसे धनवान है। धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज और भगवान धन्वन्तरि की पूजा का महत्व है।
धनतेरस का पर्व क्यों मनाया जाता है?- Dhanteras का पुराना नाम क्या है?
शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र-मंन्थन के समय माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे और उनके साथ आभूषण व बहुमूल्य रत्न भी समुद्र मंथन से प्राप्त हुए थे। इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। जैन आगम में धनतेरस को ‘धन्य तेरस’ या ‘ध्यान तेरस’ भी कहते हैं।
पांच दिनों तक मनाए जाने वाले दीपावली पर्व का धनतेरस पहला त्योहार होता है। पांच दिनों तक मनाए जाने वाले दीपावली पर्व में धनतेरस से ही भगवान गणेश, माता लक्ष्मी और कुबेर जी की पूजा आरंभ कर दी जाती है। धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं, उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है।
भगवान धनवन्तरी के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है। भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं। इसलिए भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।
Goverdhan Puja Kab Hai 2022- गोवर्धन पूजा का क्या महत्व
Latest Dhanteras Wishes, SMS 2022- हैप्पी धनतेरस कोट्स, शायरी इमेज
Dhanteras Kab Hai 2022- धनतेरस पर्व तिथि और पूजा शुभमुहूर्त
Dhanteras का त्यौहार तेरस यानी त्रयोदशी तिथि के दिन मनाया जाता है, लेकिन इस बार आश्विन माह की अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण पड़ने के कारण दिवाली का पर्व 25 अक्टूबर 2022 की बजाय 24 अक्टूबर 2022 को मनाया जायेगा। इसी कारण इस बार 22 तारीख दिन शनिवार को द्वादशी तिथि 6 बजकर 2 मिनिट तक रहेगी तथा इसके बाद त्रयोदशी प्रारंभ होगी जो अगले दिन शाम 6 बजकर 3 मिनट तक रहेगी और इसी दिन नरक चतुर्दशी भी रहेगी। इसलिए धनतेरस का पर्व 23 अक्टूबर दिन रविवार को मनाया जायेगा।
धनतेरस के पर्व को धनत्रयोदशी के रूप में भी जाना जाता है, यहाँ धन का अर्थ है संपत्ति या एश्वर्य और तेरस का अर्थ है तेरह। इस दिन माता लक्ष्मी अपने भक्तों के घरों में धन की वर्षा करती है। यह पूजा न केवल माता लक्ष्मी के लिए बल्कि कुबेर जी के लिए भी की जाती है, जो धन के देवता है। देवी लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा एक साथ की जाती है क्योंकि येसा माना जाता है कि इससे प्रार्थना का लाभ दोगुना हो जाता है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि धनतेरस के दिन भगवान यमराज की पूजा पाठ करने से असमय मृत्यु का संकट भी खत्म हो जाता है।
धनतेरस पर्व तिथि और पूजा शुभमुहूर्त- Dhanteras Date and Time 2022
- धनतेरस पर्व तिथि:- 23 अक्टूबर 2022 दिन रविवार
- धनत्रयोदशी पूजा का शुभमुहूर्त:- शाम 5 बजकर 25 मिनट से 6 बजे तक
- प्रदोष काल:- शाम 5 बजकर 39 मिनट से 8 बजकर 14 मिनट तक
- वृषभ काल:- शाम 6 बजकर 51 मिनट से 8 बजकर 47 मिनट तक
दीपावली क्यों मानते है?- दिवाली का क्या महत्व है?
धनतेरस पर्व की पूजा विधि- धनतेरस पूजा कैसे करें?
इस त्यौहार को मनाने के लिए घरों में सजावट करते है, और बड़े धूमधाम से इस त्यौहार को मनाते है। धनतेरस की पूजा विधि बहुत ही आसान है जो कि इस प्रकार है, सबसे पहले भगवान गणेश को स्नान कराया जाता है फिर उसके बाद चन्दन के लेप से उनका अभिषेक किया जाता है और फिर लाल कपडा और फूल भगवान गणेश जी को अर्पित किया जाता है। जिसके पश्चात् उनकी पूजा के लिए मन्त्र का जाप किया जाता है जो की इस प्रकार है-
मन्त्र – वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि सम्प्रभः ।
इसके बाद भगवान कुबेर को फल, फूल, मिठाई का भोग लगाकर उनके सामने दिया जलाया जाता है जिसके बाद भगवान् कुबेर जी की पूजा करने के लिए इस मन्त्र का जाप किया जाता है।
मन्त्र – ओम यक्षाय कुबेराय वैश्रवणय धनधान्यपदये धन-धन्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा ।।
इसके पश्चात् किसी लकड़ी के पटिए पर लाल कपडे का पट बिछाकर पानी से भरा कलश और गंगाजल के साथ कुछ सुपारी, फूल, सिक्के और चावल के दाने रखे जाते है और फिर चावल के दानों पर माता लक्ष्मी की मूर्ती स्थापित की जाती है। जिसके बाद माँ लक्ष्मी जी को हल्दी, सिंदूर, फूल चढ़ाया जाता है और उनके सामने दिया भी जलाया जाता है जिसके बाद माता लक्ष्मी जी की पूजा करने के लिए इस मन्त्र का जाप करते है।
मन्त्र – ओम श्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद ओम श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः ।।
धनतेरस के लिए बहुत से लोग पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को लक्ष्मी पूजा करने के बाद ही अपना व्रत खोलते हैं। शाम को घर के मुख द्वार पर दीप जलाए जाते है घरों के साथ-साथ जो लोग अपना व्यसाय करते है वो अपने ऑफिसों में पूजा पाठ और दीप जलाते है कुछ लोग अपने घर की तिजोरी को भी दीपक से रोशन करते है। उनका मानना होता है येसा करने से भगवान् कुबेर खुश होकर हमेशा उन पर अपनी कृपा बनाये रखते है।
धनतेरस की पौराणिक कथाएं- Mythology of Dhanteras
धनतेरस से जुडी कई कथाएं है जिनमे से कुछ इस प्रकार है-
वामन अवतार और राजा बलि की कथा
कथा के अनुसार, देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुच गये। लेकिन शुक्राचार्य ने भगवान विष्णु को वामन अवतार में भी पहचान लिया और राजा बलि से कहा की वामन कुछ भी मांगे तो उन्हें इन्कार कर देना। उन्होंने राजा बलि को ये भी बताया की विष्णु जो की वामन रूप में देवतओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आये है।
लेकिन राजा बलि ने शुक्राचार्य की बात नही मानी और वामन भगवान द्वारा मांगी गयी तीन पग भूमि दान करने के लिए जैसे ही कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे, तभी राजा बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गये जिससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया।
लेकिन भगवान विष्णु जो की वामन अवतार में थे, शुक्राचार्य की चाल को समझ गये जिसके पश्चात् भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमंडल में येसे डाला की शुक्राचार्य की एक आँख फूट गयी और शुक्राचार्य छटपटाकर कमंडल से बाहर निकल आये। इसके बाद राजा बलि ने 3 पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया, तब भगवान वामन ने एक पग में सम्पूर्ण पृथ्वी और दुसरे पग में अंतरीक्ष को नाप लिया।
तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान न होने पर राजा बलि ने अपना सिर भगवान वामन के चरणों में रख दिया जिसके बाद राजा बलि दान में सब कुछ गवां बैठा। इस तरह राजा बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी, उससे कई गुना धन- संपत्ति देवताओं को मिली। इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है।
Latest Govardhan Puja Wishes SMS In Hindi 2022
Latest Diwali Wishes, Quotes in Hindi 2022- हैप्पी दिवाली ग्रीटिंग
दुर्वासा ऋषि और भगवान इंद्र की कथा
धनतेरस की एक अन्य कथा के अनुसार दुर्वासा नाम के एक लोकप्रिय ऋषि ने भगवान इंद्र को शाप दिया और कहा, धन का घमंड तुम्हारे सिर में प्रवेश कर गया है। इसलिए मैं तुम्हें लक्ष्मी विहीन करता हूं जिसके पश्चात् लक्ष्मी जी इंद्र को छोड़कर समुद्र में लौट गई। इससे इंद्र कमजोर हो गए और राक्षसों ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया।
भगवान इंद्र मदद लेने के लिए भगवान ब्रह्मा और विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन का सुझाव दिया। जिसके बाद नागों के राजा वासुकी रस्सी बन गए और मंदरा पर्वत मंथन को छड़ी बनाया गया। भगवान विष्णु एक कछुए के अवतार में मंदार पर्वत को अपने पीठ पर थामे रहे। मंथन में मां देवी लक्ष्मी प्रकट हुईं और शक्तिशाली मंथन के बाद समुद्र से धन्वंतरि का उदय हुआ।
उन्हीं के हाथों में अमृत कुंभ अर्थात अमृत कलश था जिसे बाद में भगवान विष्णु ने देवताओं में बांट दिया। ये सभी कहानियां इस बात का पर्याप्त प्रमाण हैं कि लोग धनत्रयोदशी को एक शुभ दिन और हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक क्यों मानते हैं।
भगवान यमराज की कथा
कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। बहुत समय बाद उनको बेटा हुआ ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहाँ किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुँचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा। परन्तु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। रानी ने रोते हुए यमदूत से पूछा की कोई उपाय बताओ जिससे यह संकट दूर हो सके।
तब यम देवता बोले अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है, इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं, तो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीपमाला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
Bhai Dooj Kab Hai In Hindi 2022- भाई दूज पूजा तिथि, शुभमुहूर्त
आशा करते है दोस्तों आपको धनतेरस के बारे में सभी जानकारी यहाँ मिल गयी होंगी, जैसे की धनतेरस का क्या महत्व है, Dhanteras Kab Hai, धनतेरस पर्व क्यों मनाया जाता है, Dhanteras Ki Puja Kaise Karte Hai, धनतेरस की पूजा का शुभमुहूर्त कब है? बगैरा-बगैरा । अगर आपको ये लेख पसंद आया है तो इस लेख को सोशल मीडिया जैसे Whatsapp, Facebook आदि पर शेयर करके अन्य लोगो तक पहुचाये।
Bahut hi achha post hai sir
Thank You….